ममता पंडित
देश के चार राज्यों में राज्यसभा के चुनाव होने हैं । हर तरफ गहमा-गहमी है । हर पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है फिर भी असुरक्षा का भाव इतना अधिक है कि विधायकों को कैद कर रखा है । लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जो होता है , हमने सबने देखा है । सांसदों की खरीद फरोख्त खुले आम चलती है , रातों रात सरकारें बनाई और गिराई जाती हैं , बिना किसी लोक-लाज के संविधान की धज्जियाँ उड़ाई जाती है । लेकिन जिस सदन के 41 सदस्य पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं , वहां बची हुई 16 सीटों के लिए लगभग जंग का माहौल बन गया है । अख़बारों में सुर्खियां हैं ‘छोटी पार्टी और निर्दलीय विधायकों के भाव बढ़ गए हैं ‘ । संविधान में राज्यसभा के गठन एक खास उद्देश्य से किया गया है , विधायकों को इस प्रक्रिया का हिस्सा इसलिए बनाया गया है कि वे जनता से चुनकर आये हैं इसलिए नहीं कि वे मौका देखकर अपनी कीमत तय करें और किसी के हाथों बिक जाएं । कोशिश यह होनी थी कि हर क्षेत्र से वहीं के लोगों को प्रतिनिधित्व मिलें ।किन्तु आप पार्टियों उम्मीदवारों की सूची देखिए , लोकल की जगह वोकल रहने वालों को तरहीज दी गई है । राष्ट्रीय पार्टियों कईं ईमानदार कार्यकर्ता मात्र ट्विटर पर एक लाइन में अपना विरोध दर्ज करा कर चुप बैठ जाते हैं।एक जमाना था राज्यसभा के लिए मनोनीत होना या चुना जाना गर्व का विषय होता था । कईं बढ़े बढ़े नाम हैं जिन्होंने राज्यसभा की शोभा बढ़ाई है । संविधान के अनुसार राज्यसभा में विशेषज्ञ व बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्तियों को जगह मिलेगी जो उनके सम्मुख लाये गए मसलों को किसी पार्टी विशेष की विचारधारा से ऊपर उठकर देखेंगे अपनी राय रखेंगे । क्या हम यह उद्देश्य पूरा कर पा रहे हैं ? नहीं । आज राज्यसभा भी संख्या गणित का एक हिस्सा बन कर रह गई है । यही हाल विधानपरिषद का हो गया है । निचले सदन जो भी पार्टी बहुमत में है उसकी यही कोशिश होती है किसी तरह ऊपरी सदन में भी वे बहुमत में हो ताकि किसी बिल को पास कराने में कठिनाई न हो । विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाले इस देश में आज ऊपरी सदन की गरिमा की भी ठेस पहुंचाई जा रही है । फिर भी कुछ कहानियां हैं जो अपवाद हैं । संलग्न तस्वीर राष्ट्रीय जनता दल की एक कार्यकर्ता मुन्नी रजक की की है जिसे लालू प्रसाद यादव विधानपरिषद का उम्मीदवार बनाया है । इस कार्यकर्ता ने राबड़ी देवी के घर के बाहर हो रही उनकी समर्थन रैली में हिस्सा लिया था । मुन्नी देवी पटना स्टेशन पर कपड़े धोने और इस्त्री का काम करती हैं । इनके पास अपना फोन भी नहीं है । ये बदलाव की तस्वीर है , वह बदलाव जिसकी देश को सख्त जरूरत है ।
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