गौतम की तपस्या पर,
कोई संशय नहीं
लेकिंन सोचती हूँ
सोचती हूँ उंस दिन ,
सिद्धार्थ की जगह
गर यशोधरा उठ कर
चल देती कहीं
तो क्या होता उसका भाग्य
क्या मिल पाता उसे, बुद्ध सा वैराग्य
एक दिन ऎसा हो,
संसार की सारी स्त्रियां
चुन लें मोक्ष की राह
वे भी लेना चाहती हों,
जिम्मेदारियों से दूर
किसी एकांत की थाह ।
तो क्या उंस एक दिन,
चल पाएगा संसार का काम-काज ??
जिसकी कल्पना मात्र से, सिहर उठे हो,
उंस वास्तविकता का क्या अंदाज़
सच्चाई यह है की
विरक्ति औ सन्यास,
एक आसान पलायन है,
असली चुनौती
इस संसार में जीवन यापन है ।
© ममता पंडित