विदा 2021
जैसे किसी को ,
मृत्यु शैया पर ,
जीवन की आखिरी साँसे,
गिनते हुए देख
खत्म हो जाते हैं ,
उससे सारे बैर
मिट जाते हैँ
सारे राग द्वेष
बाकी रहती है
सिर्फ दया और
प्रार्थना ।
कुछ ऐसा ही लग रहा है,
तुम्हें जाते हुए देख 2021 ।
तुमने बहुत कुछ छीन कर,
छिन्न-बिन्न कर दिया जीवन।
फिर भी इन अंतिम दिनों में,
बुरा भला कहने का नहीं मन ।
बहुत अच्छी तरह जानती हूँ,
मात्र एक काल-खंड को
दोषी ठहराने से ,
हमारे पाप नहीं धुल जाएंगे ।
कुछ गंभीर गुनाहों की सज़ा से,
हम यूं बरी नहीं हो पाएंगे ।
याद रखना चाहती हूँ,
इस कठिन दौर में बिताए हुए
कुछ हसीन पल ,
करती हूँ छोटी सी प्रार्थना ,
की आज से बेहतर हो कल ।
-ममता पंडित
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