यादों के झरोखे से निकले इरादे – मेघना गिरीश
“आप उनकी देह को कैद कर सकते हैं, मगर आत्मा को नहीं
क्योंकि उनकी आत्मा आने वाले कल में विचरती है
जहाँ तक आप नहीं पहुँच सकते, सपने में भी नहीं.”
खलील जिब्रान की संतान के बारे में लिखी हुई इन पंक्तियों को श्रीमती मेघना गिरीश और गहराई से समझ पाई अपने बेटे मेजर अक्षय गिरीश की शहादत के बाद । मेजर अक्षय गिरीश 29 नवंबर 2016 को नागरौटा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए थे ।
मेजर अक्षय का सफर
मेघना जी बताती हैं कि मेजर अक्षय पर सेना की वर्दी के लिए एक जुनून सा सवार था । उनके पिता विंग कमांडर गिरीश कुमार वायुसेना से रिटायर्ड हो एकं प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे । वहीं उनके नाना , मेघना जी के पिताजी कर्नल ए के मूर्ती भी 1971 के युद्ध में भाग ले चुके थे । बचपन से जो माहौल उन्हें मिल उसका मेजर अक्षय पर गहरा असर हुआ ।
मेघना जी बताती हैं कि व अक्षय बहुत ही मेधावी थे और आसानी से किसी और क्षेत्र में जाकर काफी पैसा और नाम कमा सकते थे , लेकिन बहुत छोटी उम्र से उन्होंने देश सेवा का यह सपना सजा लिया था । कुछ मुश्किलों का चलते वे जब वायुसेना में शामिल नहीं हो पाए तो पिताजी ने उन्हें कहा भी की वे फ्लाइंग का कोर्स कर किसी प्राइवेट कंपनी में पायलट के रूप में कार्य कर सकते हैं । लेकिन मेजर अक्षय ने हर प्रलोभन को ठुकराते हुए इंजेनीयर्स (51 इंजीनियर्स) अफसर के रूप में भारतिय सेेेना की वर्दी को चुना और उन्हें अपने इस फैसले का कभी अफसोस नहीं हुआ । वो हमेशा अपनी मां से कहते थे जो खुशी और आत्मसंतोष मुझे ये कार्य करते हुए मिलता है वो कहीं और नही मिल सकता ।
नागालैंड, मणिपुुुर और कश्मीर जैसे सभी संवेेेदनशील जगहो पर उनकी पोस्टिंग रही। एक तकनीकी अफ़सर होते हुए भी सेना की पेट्रोलिंग व अन्य गतिविधियों में स्वेच्छा से भाग लेते थे , अपने सैन्य साथियों के साथ उन्होंने कईं बार खतरनाक इलाकों में गश्त की थी व इस अनुुभव से बहुत कुछ सीखा था । उनकी इस खूबी, जुनून और जज़्बे का ही परिणाम था कि 29 नवंबर 2016 को नागरौटा में हुए आंतकवादी हमले का सामना करने गई QRT (क्विक रिएक्शन टीम) का नेतृत्व करने के लिए उन्हें चुना गया । पुलिस वर्दी में आये आतंकियों कुछ महिलाओं और परिवारों को बंधक बनाने की कोशिश में थे । इसी वजह से फौज बहुत ही संयमित तरीके से हथियारों का इस्तेमाल कर रही थी । महिलाओं और बच्चों को बचाने मेजर अक्षय अपने एक और साथी मेजर कुणाल के साथ उस इमारत की बढ़े जहां आंतकी छुपेे हुए थे । उनका मकसद और मदद पहुंचने तक दुश्मन को उलझाए रखना थाा ताकि बच्चों व महिलाओं को कोई नुकसान न पहुुँचे । वो अपने इस उद्देश्य मेें कामयाब भी हुए । कुछ ही घंटों में सेना ने सभी आतंकियों को मार गिराया और सभी महिलाओं व बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया लेकिन मेजर अक्षय गिरीश ने इस मिशन के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया । गोलियों की बौछार के बाद आतंकियों ने जो ग्रेनेड हमला किया उसमें वे घायल हो गए और कोई तत्काल मदद न पहुंचने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका।
उनकी पत्नी संगीता ,बेटी नैना जो तब मात्र तीन साल की थी घटना के वक्त नागरौटा में ही थे । उनके लिए यह घटना बहुत बड़ा सदमा थी । पत्नी, बेटी और माता-पिता के अलावा मेजर अक्षय अपनी जुड़वा बहन नेहा को भी अकेला छोड़ अंतिम सफ़र पर चल दिये ।
पूरे देश में इस घटना के बाद शोक की लहर थी । सभी समाचार पत्रों व एवं न्यूज़ चैनल ने मेजर अक्षय व उनके साथियों के इस बलिदान को प्रमुखता से कवर किया था ।
पूरे देश से परिवार को शोक संदेश प्राप्त हो रहे थे जो उन्हें ये एहसास दिल रहे थे कि दुःख की इस घड़ी में वो अकेले नहीं हैं ।
फिर भी अपने घर के इस चिराग के बुझ जाने के बाद फैले अंधेरे का सामना माता-पिता को अकेले करना था और साथ ही मेजर अक्षय की पत्नी और बेटी को भी इस सदमे से बाहर निकलना था ।
मेजर अक्षय गिरिश मेमोरियल ट्रस्ट (MGAMT)
किसी भी व्यक्ति के जीवन के सभी सपने माता-पिता बनते ही बच्चों से जुड़ जाते हैं । वो उनकी परवरिश के साथ साथ ही उनके आने वाले कल को गढ़ने लगते हैं अपने ख्यालों में और साथ ही एक छोटी सी आशा रहती है दिल किसी की कोने में की आज हम जिसे चलना सिखा रहै हैं कल वो हमारा सहारा बनेंगे। पूरे जीवन की पूंजी होती है बच्चे उनका यूं चले जाना जैसे सबकुछ फिर से शून्य हो जाना ।
श्रीमती मेघना बताती हैं कि उन्हें पूरे दो साल लगे इस सदमे से बाहर आकर सबकुछ शून्य से फिर से शुरू करने में । मेजर गिरीश की यादों के सहारे उन्होंने उनके अधूरे सपनों करने का सफर शुरू किया ‘मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट (MGAMT) की स्थापना के साथ । उनका कहना है कि मेजर अक्षय अपने अपने परिवार , सभी दोस्तों, जवानों और सेना से जुड़े हुए सभी लोगों का खास ख्याल रखते थे । जब भी कोई उनसे मदद मांगता तो उसकी सहायता करने के लिए जी जान लगा देते थे ।खासकर अपने जवानों और उनके परिवार वे खास ख्याल रखते थे । उनके बच्चों को उज्जवल भविष्य के लिए हमेशा मार्गदर्शन करते थे । उनके इसी कार्य को मेजर गिरीश के माता-पिता इस मेमोरियल ट्रस्ट के जरिये आगे बढ़ा रहे हैं ।
जुलाई 2018 में ट्रस्ट ने स्कूली छात्रों के बीच देशभक्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्यों के अनुरूप गतिविधियों और कार्यशाला से अपने इस सफ़र कि शुरुवात की । मात्र दो सालों में ही ट्रस्ट ने कईं शहीदों के परिवारों से मुलाकात कर उनके जीवन में नई आशा का संचार किया है।
ट्रस्ट के प्रमुख कार्य
– छात्रों के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रमII
– देशभक्ति से ओत-प्रोत सेवाओं (सैन्य / अर्धसैनिक) में
देशभक्ति और प्रचार के लिए छात्रों के साथ कार्यशालाएँ।
– शहीदों के परिवारों के साथ एकजुटता दिखाते हुए बहादुर
सैनिकों के परिवारों से मुलाकात , जिन्होंने राष्ट्र के
लिए सर्वोच्च बलिदान दिया ।
– शहीदों के परिवारों का दौरा करने के साथ MAGMT
उनकी स्वास्थ्य जरूरतों, चिकित्सा उपचार, शिक्षा संबंधी
सहायता, पेंशन में व्यवधान, घर की मरम्मत और बेटियों
की शादी के लिए व विधवाओं से जुड़े योगदानों में
सक्रिय है।
— वार्षिक आयोजन – विजय दिवस जैसे महत्वपूर्ण
दिवसों के अवसर पर ट्रस्ट विशेष कार्यक्रम आयोजित
कर पूर्व सैनिकों व शहीदों के परिवारों का सम्मान
करता है ।
मेजर अक्षय गिरीश के अदम्य साहस और जनकल्याण की विरासत से प्रेरित यह ट्रस्ट आने वाले समय में कर्नाटक से बाहर भी अपने सामाजिक कार्यो के विस्तार के लिए प्रयासरत है । आप भी इस ट्रस्ट से जुड़ कर इस महत्वपूर्ण कार्य में अपना योगदान दे सकते हैं।
पंजीकृत कार्यालय: 635, जेड गार्डन, चरण -4, सदाहल्ली पोस्ट, बेंगलुरु -562110।
वेबसाइट: https://majorakshaytrust.org/
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Major Akshay Girsh