खूंखार भेड़िये इंसानों की शक्ल में,
नन्हीं जानों पर हमला बोलते हैं।
वो, जिनका मन है,
दुनिया में सबसे निश्छल,
उन्हें, शरीर से तोलते हैं ,
तबाह कर देते हैं उनका भूत-भविष्य-वर्तमान,
और वो, बेबस-मासूम-नादान,
इस घिनौने खेल से अनजान,
खो देते अपनी निश्छल मुस्कान।
दो-तीन साल की उम्र क्या होती है?
दुनिया गुड्डे-गुड़ियों में सिमटी होती है।
एक बार को सोचो क्या उत्तर देगा कोई,
उन आंखों में तैरते प्रश्नों का।
कोई गैर तो कम ही होता है,
अक्सर ये गुनाह होता है अपनों का।
और, क्या समझाएं हम उन्हें?
कि, बेटा इस दौर में अपनों से भी दूर रहो?
और, हो सके तो परिपक्व बनो-
सपनों से भी दूर रहो।
हम उनके आसपास पहरे बिठाएंगे,
जो वो सोच नहीं सकते उन्हें समझाएंगे।
लेकिन, गुनहगार से सवाल नहीं पूछा जाएगा,
घर का मामला हुआ ये,
वही रफा-दफा हो जायेगा।
हर ऐसी घटना कई सवाल उठाती है,
रोज़ कहीं से एक टूटी गुड़िया चिल्लाती है।
पद्मावती के लिए शहर जलाने वालो!
धर्म के नाम पर कहर ढाने वालो!
मेरे गुनहगार को फाँसी क्यों नहीं दी जाती है?
फाँसी क्यों नहीं दी जाती है?
फाँसी क्यों नहीं दी जाती है?