दृश्य एक -“हम बहुत अच्छे दोस्त थे। हमने कईं सीरियल्स में साथ में काम किया था, बहुत अच्छा वक्त बिताया था साथ में।”सर् आखिरी सवाल पिछली बार कब बात की थी।’दो साल पहले’

दृश्य दो- छह महीने पहले ही हमारी बात हुई थी। सब कुछ ठीक था।
दृश्य 3 –  मुझे अफसोस है कि मैं अपने दोस्त का आखिरी फोन नहीं उठा पाया ।

आप समझ गए होंगे इन दृश्यों के जरिये में किसकी बात कर रही हूँ । जाने वाला चला गया अब ये पश्चाताप,ग्लानि और माफी सब बेमानी है। लेकिन वो जाते हुए हमारे लिए कईं सवाल छोड़ गया है जिसके जवाब हमें ढूंढने होंगे।
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। इतने क़ाबिल, प्रतिभशाली और मेहनती कलाकार के यूं चले जाने से सिर्फ फ़िल्म इंडस्ट्री ही नहीं उनके सभी चाहने वाले।सदमें में हैं। उनकी प्रसिद्धि और लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अपनी मौत के पांच दिन बाद तक भी सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे  । इस एक आत्महत्या से कईं  सच सामने आये हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री में नई प्रतिभाओं के साथ हो रहे भेदभाव का सच , इतनी चमक धमक वाली दुनिया के अनदेखे अंधेरों का सच और लाखों की तादाद में प्रशंककों के बावजूद भीतर के अकेलेपन का सच। इस सभी मसलों पर अब एक नई बहस शुरू हो चुकी है। इस लेख में हम बात करेंगे उन परिस्तिथियों और वजहों के बारे में जिनके चलते इंसान इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है।फ़िल्मी दुनिया बाहर से जितनी चमकीली नज़र आती है अंदर से उतनी उन्हीं खाली और खोखली है । दिन रात कैमरे के सामने मुस्कुराते इन चेहरों के पीछे छुपे दर्द किसी तस्वीर में कैद नहीं हों पाते । अगर ये उदासी किसी तस्वीर में कैद ही भी जाए तो वो तस्वीर छपती नहीं , कहीं छुपा दी जाती है । बाध्य होते हैं ये सितारे एक।झूठी जिंदगी जीने के लिए । निश्चित ही कुछ विकट और विषम परिस्थियां रहीं होंगी जिसके चलते सुशांत ने यह कदम उठाया होगा । हो सकता है जैसा कहा जा रहा है इंडस्ट्री के कुछ लोग उनके खिलाफ एकजुट भी हो गए हों । लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि इस घटना के बाद उनके अपनों को खुद से ये सवाल पूछना चाहिए कि क्यो इतना जिंदादिल इंसान उनसे अपना दुःख नहीं बांट पाया। क्यों खुद को उनका करीबी बताने वाले लोगों ने दो साल या छह महीने तक उनसे हाल-चाल नहीं पूछा । क्यों उनका करीबी दोस्त एक कॉल मिस होने के बाद उन्हें फिर से कॉल नही कर पाया । ये सुशांत के दुश्मनों की जीत नहीं उनके दोस्तों की हार है  ।  
इस तरह की घटना से हमें सबक लेना होगा । तनाव या अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों पर खुल कर बात करनी होगी । हमें ये समझना होगा कि हमारे आसपास कम से कम कुछ लोग ऐसे होने चाहिए जिनसे हम खुल कर दिल की बात कर सकें , उनके  सामने हमें चेहरे पर किसी मुखौटे की जरूरत न हो। वो इंसान कोई भी हों सकता है , दोस्त,रिश्तेदार या और कोई करीबी । मानसिक बीमारियों के विशेषज्ञ कहते हैं कि गर कोई नहीं है तोआप किसी अजनबी को अपना किस्सा सुनाकर या कहीं अपने दिल की बात लिखकर अपना मन हल्का कर सकते हैं । जरूरी यह है कि जो कुछ आपके भीतर आपको परेशान कर रहा है उस विचार के बाहर आने की । एक बार आपने उस समस्या को छुपाने या उससे भागने के बजाए अगर उसका सामना कर लिया तो हल जल्द ही निकल जायेगा। साथ ही यह भी जरूरी है कि हम अपने आसपास अपने करीबियों से जुड़े रहे , मिलते रहे ,बातें करते रहें । अपने करीबियों को ये एहसास दिलाते रहें  व्यस्तता के बावजूद आपको उनकी फिक्र है, और वही आपकी प्राथमिकता है । आपके दोस्तों को आप पर इतना भरोसा होना चाहिए  कि चाहे जो परिस्थिति हो आप उनके साथ हैं और रहेंगे । डूबते को तिनके का सहारा काफ़ी होता है, और एक छोटा सा दीपक भी अंधेरी राह को रोशन कर देता है । उम्मीद रखिये और उम्मीद बंधाते रहिये । इसी पर दुनिया कायम है ।