सरहद पर दूसरी पंक्ति
आप सोच रहे होंगे कि सरहद पर ये दूसरी पंक्ति क्या है , हम सब वाकिफ हैं कि सरहद पर पहलीं पंक्ति में इस वे सैनिक खड़े हैं जिन्होंने अपना अंतिम ध्येय चुन लिया है, अपना सर्वस्व देश के नाम कर के, और इनके बिल्कुल पीछे दूसरी पंक्ति में खड़ी हैं पत्नी के रूप में वह स्त्री जिसने इस बंधन में बंधते ही अपनी जिंदगी भी देश के नाम कर दी है । वो जिसका रिश्ता देश की रक्षा के लिए पहली पंक्ति में खड़े सैनिक से , अपनी आखिरी सांस तक जुड़ गया है। ये रिश्ता जुड़ते ही वो महिलाओं की सबसे मजबूत कौम का हिस्सा हो जाती है।यह एक पूरी कौम है जो एक अलग ही मिट्टी की बनी हुई है।
कुछ वर्ष पहले रेलयात्रा के दौरान बातचीत में जैसे ही मैंने अपने सहयात्री को बताया कि मेरे पति सेना में हैं और फिलहाल कश्मीर में तैनात हैं, अचानक उनके चेहरे के भाव बदले और विस्मय और दया के मिश्रित भावों के साथ उन्होंने पूछा ‘डर नही लगता’ , उस वक़्त तो मैंने वो सवाल हंस कर टाल दिया लेकिन उनका वो सवाल मेरे दिमाग के किसी कोने में जमकर बैठ गया।
मुझे याद आया कि मुझसे ये सवाल कितनी बार पूछा जा चुका है अभी तक , खुद मेरी माँ ने पहला सवाल यही पूछा था जब मैंने उन्हें बताया था कि मैं अपनी पसंद से शादी करना चाहती हूँ और वह भी एक फौजी से। ये सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि मां को मेरे अपनी पसंद से शादी करने पर एतराज़ नहीं था। उन्हें परेशानी थी तो बस इस बात की क्यों में एक आर्मी ऑफिसर से शादी करना चाहती हूँ और इसकी वजह था वही ‘डर’।
मैंने अपने आप से वही सवाल पूछना शुरू किया ‘क्या मुझे डर नही लगता” क्या मेरे जैसी लाखों और महिलाएं जिन्होंने गर्व के साथ देश के सिपहसालारों को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना है, क्या उन्हें डर नही लगता। मैंने अपनी और उन सब की जिंदगी को गहराई से पढ़ना समझना शुरू किया और पाया कि डर तो है, लेकिन कुछ और है जो इस डर के आगे है, और वो है साहस, सहनशीलता, गर्व और आत्मविश्वास के साथ इस डर से लड़ता हुआ उनका व्यक्तित्व।
एक बार को सोचीये क्या हो अगर वो डर हमसे जीतकर हमारे अंदर घर करके बैठ जाये। हमारे आसपास हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में पसर जाए। क्या हम एक सामन्य जिंदगी जी पाएंगे। क्या हम वो दोहरी जिम्मेदारीयां इतनी आसानी से निभा पाएंगे जो इस गठबधंन के साथ ही हमने स्वतः अपना ली हैं । अनुष्का शर्मा न, जो स्वयं एक फौजी परिवार से आती है, उन्होंने एक बार ये बात कही थी और मैं उन्ही के शब्द दोहरा रही हूँ कि “हर सैन्य पत्नी इसलिए महान है क्योंकि वो अपने भीतर किसी कोने में छुपे हुए इस डर को कभी अपने बच्चों या बाकी परिवार तक कभी नही पहुचने देती”। ये जो भी चिंता या आंशका होती है वो हमारे जहन में जन्म लेती है और वहीं दफन हो जाती है।
यकीन मानिए मैंने बहुत सी ऐसी महिलाओं को जानती हूँ जिनके पति बहुत ही संवेदनशील इलाकों में तैनात हैं लेकिन उनके माथे पर एक शिकन नही है। जिस बेफिक्री से अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए वो अपनी जिन्दगी जीती हैं मुझे अचरज होता है, मैं खुद उनमे से एक होते हुए भी ये सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि जानें ये किस मिट्टी की बनी है और इसीलिए में कहती हूँ कि “डर के आगे वो है”।
मैं बहुत सी ऐसी महिलाओं को भी जानती हूँ जो इस डर से दो दो हाथ कर चुकी हैं । वो जिनके साथ जीने मारने के सपने सजाए थे उन्हें तिरंगे से सजाकर रुख्सत कर चुकी हैं। अपने सारे गम भुलाकर और बची कुची हिम्मत जुटाकर सिर्फ अपनी नहीं दो परिवारों की जिंदगी को पुनः पटरी पर ले आई हैं। वे आंखों में आंसू नही माथे पर गर्व सजा कर जीती हैं।
उन्हें किसी वीरता पुरस्कार से नही नवाज़ जाता न उनके अदम्य साहस की गाथा कहीं इतिहास में दर्ज होती है , लेकिन फिर भी उनका समर ज़ारी है ….
उनके इस जज़्बे को मेरा सलाम।
जयहिंद जय हिन्द की सेना।
ममता पंडित