मुझे हमेशा लगता था दुनिया में दो तरह के इंसान होते हैं, एक जो चुपचाप मौत का दामन थाम लेते हैं और दूसरे जो रोते चिल्लाते मौत की तरफ बढ़ते हैं और फिर में तीसरे किस्म के इंसानों से मिला।
कईं बार में उन्हें अब भी सपनों में देखता हूँ। बेखौफ अपने आखिरी कदम बढ़ाते हुए । डगमगाना तो उन्होंने कभी सीखा ही नहीं था। पर सबसे ज्यादा याद हैं वो आँखे। अंदर तक चीरती हुई निडर ,साफ़,स्थिर। -जेम्स मैकिनले
सोत्र – फ़िल्म रंग दे बसंती
फिर में तीसरे किस्म के इंसानों से मिला।
