जन्मी हूँ कईं बार

जन्मदिन एक ही दिन क्यो मनाऊँ
क्योंकि छोटे से इस जीवन में भी
जन्मी हूँ कईं बार।

माँ-बाबा की परवरिश से,
जब जुड़ा विचारों का विस्तार ।
निराशा से व्यथित मन में,
जब हुआ आशा का संचार ।
तन्हाई के हर आलम को,
जब मिला दोस्तों का त्योहार ।
हाथ थामे जब दिखाया किसी ने,
स्वयं से आगे का संसार।

हां जन्मी हूँ हर बार,
जब भी ‘ममता’ को मिला,
ममता का उपहार ।

© ममता पंडित