भीड़

चलो उठो और भीड़ का हिस्सा बन जाओ..
पत्तथर लाठी जो मिले हथियार उठाओ
वो जिसका नाम भी नही पता तुम्हें
उसे सजा सुनाओ सबक सिखाओ..
तुम्हारा तो यूँ भी कोई अस्तित्व नहीं , व्यक्तित्व नहीं
भीड़ के बहाने ही सही, कोई तो पहचान बनाओ..

पर याद रखो ये वक्त करवट लेता है.
सारे हिसाब यहीं पूरे कर लेता है
जैसे ही तुम अलग हुए, तुम्हारा नम्बर आयेगा,
उसी भीड़ से तुम पर भी कोई पत्तथर आयेगा
अब भी वक्त है संभल जाओ…
‘इंसान’ को ‘भीड़’ बनने से बचाओ..

-ममता पंडित