ये जो शब्दों में बिखरा हुआ है यही मेरा वजूद है
कोई क्यों लिखता है सिर्फ इसलिए नहीं कि कोई पढ़े क्योंकि लिखना पहले आता है। जब हम लिख रहे होते हैं तब वो कहीं छपा नहीं होता लेकिन हमारी कलम अनवतरत चलती रहती है। उन शब्दों का पढ़ा जाना और किसी से उनका जुड़ पाना बहुत बाद में आता है। हम लिखते हैं मन में उठे हुए भावनाओं के आवेग को एक दिशा देने के लिए, उस बैचैनी से मुक्ति के लिए जो इन शब्दों के कागज़ पर उतरने तक हमारे साथ रहती है। हम लिखते हैं इन मोतियों पर कागज़ पर बिखेर देने के सुकून के लिये। जरूरी नहीं कि की मैं मेरे दर्द, मेरी खुशी और सिर्फ मेरे हालात ही बयां करती हूँ। कईं बार दिलो-दिमाग में कोई किरदार इस कदर छा जाता है कि उसकी कहानी कहना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य हो जाता है। मिलों दूर बैठे लोगों की आवाज़े उस वक़्त तक लगातार सुनाई देती हैं जब तक वो किसी रचना में नहीं उतर जाती। कईं बार अश्कों की बारिशों के साथ सफ़र शुरू होता है और मीठी मुस्कान पर खत्म और बहुत बार इसका उलट भी , हास्य-व्यंग्य लिखते हुए अचानक संवेदना का कोई ज्वार फूट पड़ता है। जो भी है बस यही समझ पाए कि लिखते रहना है।यूं मान लीजिए एक अनंत से मिले हुए किसी आदेश का पालन है बस। कोई हमें राह दिखा रहा है हम चले जा रहे हैं अपने दिल की आवाज़ को कागज़ पर उतारे जा रहे हैं …धीरे धीरे वजूद शब्दों में बिखरता जाता है…..इसलिए वही लिखा है जो दिल ने कहा है। आप भी वही पढिये जो आपका दिल कहे।
सफरनामा
लेखनी
चक्रव्यूह
तुम्हारे जन्म के समय ,
चेहरों की उदासी से शुरू होकर,
तुम्हारे कौमार्य पर
तनती भृकुटियों की रेखा से होते हुए
सदा सुहागन रहो के आशिर्वाद तक,
पंक्ति दर पंक्ति
रचा गया है यह चक्रव्यूह ।
अब जबकि तुम लड़ते लड़ते
पहुँच चुकी हो भीतर तक।
तो बस यह याद रखो की
की तुम अभिमन्यु नहीं
अर्जुन हो इस महाभारत की ।
और तुम्हें बखूबी ज्ञात है
हर चक्रव्यूह का रहस्य ।
तुम्हें कर्म पथ का
बोध कराने को ही कही गई है गीता ।
स्वधर्म की रक्षा के लिए
तुम कभी भी
खींच सकती हो प्रत्यंचा।
-ममता पंडित
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ऊपरी सदन की गरिमा को ठेस पहुँची है
ममता पंडित देश के चार राज्यों में राज्यसभा के चुनाव होने हैं । हर तरफ गहमा-गहमी है । हर पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है फिर भी असुरक्षा का भाव इतना अधिक है कि विधायकों को कैद कर रखा है । लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जो होता है , हमने सबने देखा…
परिचय

मेरा नाम ममता है और अपनी सभी सामाजिक जिम्मेदारियां, पढ़ाई, नौकरी,शादी और बच्चे पूरी करने के बाद में खुद की तरफ लौटी हूँ। बहुत देर से सही मुझे ये एहसास हुआ की सबसे पहले मेरी स्वयं के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी है और इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए में पुनः लौटी हूँ अपने पहले प्यार लेखन की तरफ, और और इस दुनिया में लौटकर जो सुकून मिला वो शब्दों से परे है। अच्छा हिंदी साहित्य पढ़ते और लिखते रहना चाहती हूँ और ये भी चाहती हूँ कि हर व्यक्ति समझे स्वयं के प्रति अपनी जिम्मेदारी और जीवन के चाहे किसी मोड़ पर ही सही,कुछ पल को ही सही वो लौटे वहां जहाँ उसकी आत्मा बसती हो, जहां उसे सुकून मिलता हो।
यकीन मानो जो नज़र आती हूँ , सब धोखा है ये जो शब्दों में बिखरा हुआ है यही मेरा वजूद है
सफर के साथी






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